राष्ट्रीय एकता और अखंडता पर निबंध
अथवा राष्ट्रीय एकता एवं सुरक्षा 




Essay on National Unity and Integrity
Essay on National Unity and Integrity



रूपरेखा :-

  • प्रस्तावना
  • राष्ट्रीय एकता और अखण्डता का अर्थ
  • एकता और अखण्डता की आवश्यकता
  • छात्रों का योगदान
  • राजनीतिज्ञों का योगदान
  • अन्य वर्गों का योगदान
  • उपसंहार





प्रस्तावना :-

संस्कृति, धर्म, प्रदेश फूल हैं; भारत मेरा हार है।
विविध क्यारियों से परिशोभित, उपवन यह साकार है।

यदि उपवन की क्यारियाँ ही द्रोह पर उतारू हो जाएँ, माला के फूल परस्पर द्वेष से भर उठें तो कवि की उपर्युक्त कल्पना का क्या होगा ? रत्नहार के टूटने पर हीरा हो या पन्ना, नीलम हो या पुखराज सब धरती पर बिखर जाते हैं। संस्कृति की सुरभि, इतिहास का गौरव और संगठन की शक्ति का लाभ तभी तक मिलेगा जब तक राष्ट्रीय एकता सुरक्षित रहेगी ।  देश की एकता और अखण्डता यदि संकट में पड़ी तो गुलामी के द्वार फिर खुल जायेगें ।




राष्ट्रीय एकता और अखंडता का अर्थ :-

राष्ट्र के प्रमाणन अंग तीन हैं - भूमि, निवासी और संस्कृति ।  एक राष्ट्र के दीर्घजीवन और सुरक्षा के लिए  इन तीनों का सही सम्बन्ध बना रहना परमावश्यक होता है। यदि किसी राष्ट्र की भूमि से वहाँ के राष्ट्रवासी उदासीन हो जायेगें तो राष्ट्र के विखण्डन का भय बना रहेगा।
1962 में चीन का आक्रमण और भारत की लाखों किलोमीटर भूमि पर उसका अधिकार इसका ज्वलन्त उदाहरण है।
राष्ट्र की भूमि माता के तुल्य है। माता भूमिः पुत्रोअहं पृथिव्याः यह भावना राष्ट्र की अखण्डता के लिए परमावश्यक है।

राष्ट्र का दूसरा अंग है - निवासी या जन। यदि इन राष्ट्रजनों में परस्पर प्रेम और सहयोग न होगा अथवा राष्ट्र के किसी भी प्रदेश के जनों की उपेक्षा होगी तो राष्ट्र की एकता अखण्डता कभी भी संकट में पड़ सकती है। आज कश्मीर, पंजाब, और असम में इसी कारण एकता और अखण्डता को चुनौतियाँ मिल रही हैं।

राष्ट्रजनों को एक सूत्र में बांधने वाली राष्ट्रीय संस्कृति होती है। केवल एक स्थान पर निवास करने वाला जनसमूह राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकता, जब तक कि वह परस्पर सांस्कृतिक सूत्र से न बँधा हो। धर्मिक सदभाव, सहयोग, पर्व, उत्सव, कला, और साहित्य संस्कृति के अंग हैं।  इनका आदान-प्रदान सांस्कृतिक एकता को जन्म देता है।
स्पष्ट है कि राष्ट्रीय एकता और अखण्डता एक राष्ट्र के जीवन और समृद्धि के लिए अनिवार्य शर्तें हैं।




एकता और अखण्डता की आवश्यकता :-

आज भारत के अस्तित्व और सुरक्षा को गंभीर चुनौतियाँ मिल रहीं हैं। ये चुनौतियाँ भीतर और बाहर दोनों ओर से हैं। भीतर से प्रादेशिक संकीर्णता, धार्मिक असहिष्णुता, जातीय संकोच स्वार्थपूर्ण राजनीति देश को विखण्डन की ओर ले जा रही है और बाहर से पड़ोसी देशों के षडयंत्र हमको तोड़ने पर कटिबद्ध हैं।  देश के विभिन्न भागों में व्याप्त आतंकवादी गतिविधियाँ इसका प्रमाण हैं।

संसार के कुछ विकसित और शक्तिशाली राष्ट्र भी अपने राजनीतिक और व्यावसायिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए भारत को बिखरता हुआ देखना चाहते हैं।

इतिहास गवाह है कि भारतभूमि पर विदेशी ऑंखें निरंतर ललचाती रही हैं। जब-जब हम एक रहे, विजयी रहे।  आक्रमण की बाढ़ हमारी एकता की चट्टान से टकराकर चूर-चूर हो गई। जब-जब हम बिखरे, हमारी पिटाई हुई।
हम परतंत्र हुए। हजारों वर्ष की अपमानजनक गुलामी हमें यही सिखाती है कि एक होकर रहो, एक राष्ट्र बने रहो।

विविध धर्मों, आचारों, भाषाओं, और प्रदेशों वाले देश को तो एकता की अत्यंत आवश्यकता होती है।




छात्रों का योगदान :-

राष्ट्रीय एकता और अखण्डता का उत्तरदायित्व केवल सरकार या सेना पर नहीं होता। हर नागरिक का यह परम धर्म है कि राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य से परिचित रहे और उसका पालन करे। छात्रवर्ग राष्ट्रीय एकता में अनेक प्रकार से योगदान कर सकता है। उसे अपनी राष्ट्रीय-संस्कृति और इतिहास का आदर करना चाहिए और अपने जीवन में उसे झलकाना चाहिए। 

विदेशी संस्कृति के प्रति ललकना भावी संकट का सूत्रपात होता है। छात्रों को विविध समुदायों और धर्मों के अनुयायी मित्रों बनाने चाहिए। राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए। राष्ट्र में प्राप्त शिक्षा और योग्यता का प्रयोग राष्ट्र की सेवा में करना चाहिए, विदेशी नौकरी के लिए ललचाना नहीं चाहिए। अपनी भाषा, वेष-भूषा और संस्कृति पर गर्व चाहिए । विदेशी षड़यंत्रकारियों  के प्रलोभनों से बचना चाहिए।
आतंककारियों से अपनी राष्ट्रीय एकता को सुरक्षित रखना हमारा परम् धर्म है। चाहे हमें इसके लिए कितना ही बड़ा बलिदान क्यों न करना पड़े।




राजनीतिक का योगदान :-

दुर्भाग्य से आज भारत का राजनीतिक वर्ग ही राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के लिए सबसे अधिक सकंट उपस्थित कर रहा है।  हर महत्वाकांक्षी और पदलोलुप राजनीतिक नेता एक दल बना लेता है। सारे नैतिक मूल्यों को धता बताने वाले ये राजनेता कपड़ों की भाँति बदलते रहते हैं।
आज राजनीतिक-मूल्यों और सिद्धांतों पर न चलकर अब जाति, धर्म और गोत्रों तक जा पहुँची है। जातीय-विद्वेष को भड़काकर राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ हमारी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के शत्रु हैं ।

राजनितिज्ञों को राष्ट्रहित सर्वोपरि मानकर राजनीति करनी चाहिए। देश में दो या तीन राजनीतिक दल रहें तो प्रजातंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहेगा। दलों की निष्ठा दलीय हितों के प्रति न होकर राष्ट्र के मंगल के प्रति होनी चाहिए।




अन्य वर्गों का योगदान :-

समाज के अन्य वर्गों का उत्तरदायित्व भी इतना ही महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक हों या व्यापारी, श्रमिक हों, या श्रीमन्त, सबको राष्ट्र हित को ध्यान में रखकर चलना चाहिए। राष्ट्र जिएगा तो सब जियेंगे। यदि राष्ट्र टुटा तो सब को धराशायी और धूल-धूसरित होना पड़ेगा।




उपसंहार :-

अंत में यह कहना पड़ता है कि राष्ट्रीय-एकता और अखण्डता भारतीयों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है। इस जलयान पर हम सभी सवार हैं यह डूबता है तो सबको डूब जाना पड़ेगा। इस एकता के कंठहार को सँभालकर रखना ही आज राष्ट्रधर्म है ; क्योंकि -

माला टूटी तो मनके बिखर जाएँगें, कुछ इधर जाएँगे, कुछ उधर जाएँगे।
बाग से द्रोह करके मिलेगा भी क्या ? क्यारियो ! जल-पवन को तरस जाओगी।
मेड़ ढह जाएँगी, रूप लुट जाएगा। सम्पदा वन-पशु सारी चर जाएँगे। माला टूटी तो बिखर जाएँगे।