भारतीय राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध
अथवा वर्तमान राजनीति : कथनी और करनी
अथवा राजनीति और अनुशासन
अथवा दलबदल और राजनीति
अथवा राजनीति का भ्र्ष्टाचार : कारण और निवारण
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Essay on Criminalization in Indian Politics |
रूपरेखा :-
- प्रस्तावना
- पूर्व राजनीतिज्ञ
- वर्तमान राजनीति
- राजनीति का भविष्य
- उपसंहार
प्रस्तावना :-
नीति भारतीय संस्कृति का एक सम्मानित अंग है। धर्मनीति, समाजनीति, दंडनीति आदि की भाँति राज के साथ भी नीति जोड़कर भारतीय चिन्तकों ने आरम्भ में ही राजकीय निरंकुशता के हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियाँ डाल दी थीं। राजमद पर नीति का अंकुश लगाकर उसे अनुशासित किया गया था। राजा के साथ मंत्रिपरिषद इसी नीतिमार्ग के दर्शन के लिए रहती थी।
जब लोकतंत्र का युग आया तो लोक और तंत्र के वास्तविक सम्बन्ध को स्मरण कराने के लिए नीति की आवश्यकता पड़ी। अनीति के लिए भारतीय संस्कृति में कहीं स्थान नहीं था। जीवन के हर क्षेत्र पर नीति का शासन हमने स्वीकार किया था।
पूर्व राजनीतिज्ञ :-
प्राचीनकाल में ही राजनीति की बड़ी स्पष्ट अवधारणा थी। नीतियुक्त राज ही राजनीति का लक्ष्य था :-
संवर्द्धनं च साधूनां दुष्टानां च विमर्दनम। राजधर्मः बुधाः प्राहुरदंडनीति विचक्षणाः।।
राजधर्म और राजनीति में विशेष अन्तर न था। समाज की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा, सज्जनों का संवर्द्धन और दुष्टों का मर्दन - यही राजा का कर्तव्य बताया गया था। धीरे-धीरे राजकीय सुखों की लालसा नीति पर भारी पड़ती गई और राजनीति कूटनीति का पर्याय बन गई।
राम और भरत का आदर्श, कंस और जरासंघ तक जा पहुँचा। राज के साथ नीति का संयोग निरर्थक हो गया।
हरिश्चंद्र एक निर्लोभी शासक का प्रतीक न रहकर आक्षेप और उपहास का मुहावरा बन गया।
वर्तमान राजनीतिज्ञ :-
आज राजनीति का अर्थ ही पलट गया है। राजनीतिज्ञ का अर्थ धूर्त अवसरवादी, पदलोलुप और असत्यवादी व्यक्ति हो चुका है। किस प्रकार प्रतिरक्षी को धराशायी किया जाये ? किस प्रकार मतदाताओं को मुर्ख बनाया जाये ? किस प्रकार राज्यासन को अपनी स्वार्थ-सिद्धि का मुहरा बनाया जाए ?
इन सब कार्यों में जो निपुण हो वही व्यक्ति आज राजनीति का अधिकारी विद्वान् माना जाता है।
आज की राजनीति में कथनी और करनी की असंगति साधारण-सी बात है। मनस्यन्यत वचस्यन्यत ही आज राजनीति का सबसे बड़ा चातुर्य है, कौशल है। जो सच बोलने का व्रत लेता है, उसके लिए राजनीति में कोई स्थान नहीं। आज के राजनीतिज्ञ दोहरा जीवन बिताते हैं ।
मंच पर उनका कुछ और ही रूप होता है और मंच से हटकर कुछ और । लोकतंत्र का उपहास आज ऐसे ही राजनीतिज्ञों के कारण को रहा है। कहने को जनता स्वामी है और तंत्र सेवक है किन्तु वास्तविक ठीक विपरीत है -
हाथ बाँधे लोक है नीचे खड़ा, वंदनाएँ हो रहीं सब तंत्र की।
मतदाता से मत-याचना करने जाओ तो लम्बे-चौड़े वायदे करो। सुख, सुविधाओं और सुरक्षा का स्वप्नजगत सजा दो । पदासीन होते ही सब-कुछ भूल जाओ । केवल अपना और अपनों का स्वार्थ सिद्ध करने में लीन हो जाओ । अपनी कुर्सी बचाने के लिए दल बदलने से लेकर निकृष्टतम आचरण भी करना पड़े तो निर्लज्जता से किए जाओ । यही है आज की राजनीति की परिभाषा ।
दल बदलना उनके बाएँ हाथ का खेल हो गया है। आया राम गया राम की राजनीति जोरों पर है, सभी पैसा देख रहें हैं, पद देख रहे हैं लोकतंत्र की सुरक्षा खतरे में है चारों ओर विविध प्रकार के काण्ड हो रहे हैं ।
राजनीति का भविष्य :-
आज जनता की धारणा बन चुकी है कि एक चोर या अपराधी कर लो किन्तु एक राजनीतिज्ञ का नहीं। राजनीतिज्ञों की कथनी और करनी के बीच कोई सम्बन्ध रह ही नहीं गया है।
धर्म-निरपेक्षता पर भाषण देने वाले ही जनता को धर्म के नाम पर बाँटकर अपनी कुर्सी की सुरक्षा कर रहे हैं। राजनीति का अपराधीकरण हो चुका है। बाहुबल और धनबल का निर्लज्ज खेल खुलकर खेला जा रहा है।
विश्व-भर की अशान्ति, रक्तपात और युद्ध के लिए दल-बदलू एवं सिद्धांतहीन राजनीति ही उत्तरदायी है।
राजनीति ने ही दो विश्वयुद्ध कराये और वही तीसरे विश्वयुद्ध की भूमिका बना रही है। आज के राजनीतिज्ञों ने हर देश में जीवन-मूल्यों का पतन कराया है। आज तो राज के साथ नीति शब्द जोड़ने में भी संकोच होता है।
यदि यही स्थिति रही तो राजनीति मानव-जाति का विनाश करके रहेगी। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका - सभी राजनीति के खिलौने बन चुके हैं। प्रजातंत्र, न्याय का शासन, सिद्धान्त की राजनीति, मतदान - ये सभी खोखले शब्द हैं।
जिस मत्स्य न्याय से मुक्त होने के लिए मानव ने राज्य संस्था की स्थापना की थी, आज वही राज्य उसके अस्तित्व को चुनौती दे रहा है। राजनीति का भविष्य पूर्ण अंधकारमय है। आज की राजनीति धूर्तता का दूसरा नाम है।
उपसंहार :-
यदि समाज को, व्यक्ति को, जीवन के महान मूल्यों को बचाना है तो राज के साथ नीति को वास्तविक अर्थों में जोड़ना होगा। नीति के शासन के बिना राज निरंकुश होता है। नीति अनुशासन के बिना राज केवल बलवानों की विलास क्रीड़ा है। लोकतंत्र को वास्तविक अर्थों में लोक का तंत्र तभी बनाया जा सकता है। जबकि राजनीतिज्ञ लोग कथनी और करनी की एकता का पालन करें। इसके लिए जनता का जागरूक और कर्तव्यमुखी होना परम आवश्यक है।
धूर्त, असत्यवादी, पदलोलुप, दल-बदलू और समाजविरोधी तत्वों को कदापि शासन में न आने दें। मत-याचना के समय राजनीतिज्ञ लोग जो वचन दें, उनका उनसे पालन कराया जाए। तभी लोकतंत्र व् समाज का भविष्य सुरक्षित हो सकेगा।
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