अनुशासन और विद्यार्थी पर निबंध
अथवा छात्र-असन्तोष : कारण और निवारण
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Essay on Discipline and Student |
रूपरेखा :-
- प्रस्तावना
- अनुशासन का अर्थ
- अनुशासन के विविध रूप
- विद्यार्थी-जीवन में अनुशासन का महत्व
- अनुशासन लाने के उपाय
- उपसंहार
प्रस्तावना :-
'छात्रों और पुलिस में जमकर संघर्ष ।' 'छात्रों ने एक्सप्रेस गाड़ी को फूँक दिया ।' "छात्रों द्वारा परीक्षाओं का बहिष्कार ।" 'नकल करते पकड़े जाने पर छात्रों द्वारा अध्यापक की हत्या ।' शायद ये समाचार अब हमारे दैनिक जीवन की सामान्य घटनाएँ बन चुके हैं । अखबार में इन्हें पढ़कर हम चौंकते नहीं, चिन्तित नहीं होते। सिर्फ एक रटे-रटाये वाक्य में अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करके निश्चिन्त हो जाते हैं - 'छात्रों में अनुशासनहीनता बहुत बढ़ रही है।' पर हमारी उदासीनता का परिणाम कितना भयंकर और दूरगामी होने जा रहा है, इस पर विचार आज नहीं तो कल हमें अवश्य करना पड़ेगा। वरना वही कहावत चरितार्थ हो जाएगी कि - 'इस घर को आग लग गई घर के चिराग से।'
अनुशासन का अर्थ :-
'अनु' का अर्थ है - पीछे तथा 'शासन' का अर्थ है - नियम या व्यवस्था ; इस प्रकार 'अनुशासन' का अर्थ हुआ शासन अर्थात व्यवस्था के पीछे चलना । जीवन के विविध क्षेत्रों में व्यवस्था और सुख-शांति बनाये रखने के लिए जो नियम-उपनियम बनाये गए हैं, उनका स्वेच्छा से पालन ही अनुशासन है। कानून के पीछे दण्ड का भय होता है, इसलिए लोग उसे मानते हैं परन्तु अनुशासन का पालन नैतिकता तथा अन्तरात्मा की प्रेरणा से होता है। छात्र-जीवन, भावी मानव-जीवन की तैयारी है, अभ्यास-भूमि है। इसलिए छात्रों को तो अनुशासन को स्वीकार करना परम आवश्यक है।
अनुशासन के विविध रूप :-
अनुशासन के रूप भी अनेक है। वह विविध रूपों में समाज के विविध अंगों में देखा जा सकता है । धार्मिक-अनुशासन, नैतिक-अनुशासन, सामाजिक-अनुशासन आदि-आदि इसके रूप हैं। वस्तुतः इसे दो ही भागों में विभक्त किया गया है, जिन्हें क्रमशः बाह्या अनुशासन एवं आन्तरिक अनुशासन कहा जाता है।
जब मानव को सैनिक के समान अनुशासन में रहने को बाध्य किया जाता है और उसे उसी ढंग से आदेश व विधान के पालन हेतु प्रशिक्षित किया जाता है तो इस प्रकार का अनुशासन बाह्या अनुशासन कहलाता है किन्तु जब इसका पालन स्वेच्छा से हो तो यह स्वाभाविक या आंतरिक अनुशासन कहलाता है। इसमें सन्देह नहीं है कि दोनों की ही समय-समय पर आवश्यकता बनी रहती है, किन्तु श्रेष्ठ स्वाभाविक-अनुशासन ही है। इसमें स्वायित्व होता है जबकि बाह्य-अनुशासन अस्थाई होता है।
विद्यार्थी-जीवन में अनुशासन का महत्व :-
विद्यार्थी-जीवन में अनुशासन का महत्व सर्वविदित है। पुराकाल में, जब शिक्षा आश्रमों में दी जाती थी, विद्यार्थियों को कठोर-से-कठोर नियमों का पालन करना पड़ता था। ऋषि धौम्य के आश्रम में जैसा कठोर अनुशासन विद्यमान था, वह आज के विद्यार्थियों की स्मरण रखना चाहिए, क्योंकि उनके जीवन से इसका महत्वपूर्ण व अनिवार्य सम्बन्ध है। यह वह समय है जब जीवन के विशाल भवन की नींव रखी जाती है । यदि नींव कच्ची हुई तो सारा जीवन ही ढुल-मुल हो जायेगा और परिणामतः केवल असफलता ही हाथ लगेगी । यह अति खेद का विषय है कि आज का विद्यार्थी अनुशासनहीनता की ओर जा रहा है। गुरुजनों का अपमान, माता-पिता का उपहास, पढ़ाई से जी चुराना, अवज्ञा करना आदि सभी अनुशासनहीनता के लक्षण हैं।
अनुशासन लाने के उपाय :-
छात्रों में अनुशासन लाने के लिए उन कारणों का निवारण करना होगा जो असन्तोष का आधार बने हुए हैं। माता-पिता को अपने व्यवसाय अथवा व्यस्तता से समय निकालकर अपनी सन्तान के आचरण, समस्याओं और सम्पर्क पर ध्यान देना चाहिए। विद्यालयों में शैक्षिक वातावरण स्थापित होना चाहिए। अव्यवस्था फैलाने वाले सभी तत्वों को नियन्त्रित किया जाना चाहिए। शिक्षा और परीक्षा-प्रणाली सोद्देश्य, रोजगारपरक और व्यापक होने चाहिये। रोजगार के अवसरों की अधिक से अधिक वृद्धि होनी चाहिए। राजनीतिक दलों को विद्यालयों में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं होनी चाहिए। विद्यालयों का वातावरण पूर्णतया शैक्षिक और जहाँ तक हो सके शहरी कोलाहल से दूर होना चाहिए।
उपसंहार :-
छात्र-जगत में बढ़ती अनुशासन अशुभ संकेत है। आज के युग में प्रतिभाशाली, अनुशासित युवा पीढ़ी ही किसी राष्ट्र की शक्ति है। देश की अनेक समस्याएँ अनुशासनहीनता की ही देन हैं। स्वार्थी राजनीतिज्ञों से छुटकारा पाने और एक शक्तिशाली व समृद्ध भारत के निर्माण के लिए छात्रों में अनुशासन और आत्मनियंत्रण परम् आवश्यक है लेकिन इसके लिए छात्र-जीवन की समस्याओं, अभावों और आकांक्षाओं को समझाना और उनका समुचित समाधान करना परम आवश्यक है। यह कार्य नियम-कानून की कठोरता से नहीं बल्कि सहृदयता, निःस्वार्थ सहयोग और दूरदर्शिता से ही हो सकता है।
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