समाचार पत्रों का महत्व पर निबंध
अथवा समाचार-पत्र : प्रजातंत्र के प्रहरी
अथवा समाचार-पत्रों की उपादेयता



Essay on Importance of Newspapers
Essay on Importance of Newspapers



रूपरेखा :-

  • प्रस्तावना
  • समाचार-पत्रों का विकास
  • मुख्य समाचार पत्र-पत्रिकाएँ
  • प्रमुख समाचार-एजेन्सियाँ
  • समाचार-पत्रों का दायित्व
  • समाचार-पत्रों का महत्व 
  • उपसंहार





प्रस्तावना :-

समाचार-पत्र आज शिक्षित और प्रबुद्ध-वर्ग की दिनचर्या का अनिवार्य अंग बन गया है। 'अख़बार' की आवाज सुनते ही सारा परिवार बेचैन हो उठता है।  जिसके हाथ पहले पड़ गया वह उसे पकड़कर बैठ जाता है। बाकी लोग ले भागने की मुद्रा में खड़े रहते हैं। अखबार एक नशा है कुछ लोगों के लिए ; देश-विदेश के और स्थानीय समाचारों के द्वारा दुनिया के साथ चलने का नशा, प्रगतिशील कहलाने का नशा। राजनीति, समाज, धर्म, भाग्य और दिन-दशा - सब-कुछ है आज के समाचार-पत्र में।




समाचार-पत्रों का विकास :-

'समाचार-पत्र' शब्द आज नितान्त लाक्षणिक हो गया है। अब समाचार-पत्र केवल 'समाचारों से पूर्ण पत्र' नहीं रह गया है बल्कि साहित्य, राजनीति, धर्म, विज्ञान आदि विभिन्न विधाओं को भी अपनी कलेवर-सीमा में संभाले चल रहा है किन्तु वर्तमान स्वरूप में आते-आते समाचार-पत्र ने लम्बी यात्रा तय की है। 

ऐसा माना जाता है कि समाचार-पत्र  का जन्म सोलहवीं शताब्दी में इटली के वेनिस नगर में हुआ। वहाँ से यह इंग्लैण्ड में आया और अठारहवीं शताब्दी में अँग्रेजी शासन के साथ भारत में अवतरित हुआ।  भारत का प्रथम समाज-पत्र ईसाई मिशनरियों द्वारा प्रकाशित समाचार-दर्पण माना जाता है।

सामाजिक जागृति के लिए राजा राममोहन राय ने कौमुदी और ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने प्रभात नामक पत्र प्रकाशित किये। इसके पश्चात् क्रमशः अनेक समाचार-पत्रों ने जन-जागृति का पुनीत कार्य हाथों में लिया। विश्वामित्र, चन्द्रिका, केसरी, प्रताप, अर्जुन तथा सैनिक आदि का जनता में बहुत प्रचार रहा। इन पत्रों ने भारतीय समाचार-पत्रों का मार्गदर्शन किया और धीरे-धीरे अनेक पत्र प्रकाशित होने लगे, जिसमें अँग्रेजी और भारतीय भाषाओं के पत्र सम्मिलित थे।




प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाएँ :-

देश के स्वतन्त्र होने के पश्चात् समाचार-पत्रों का तीव्रता से विकास हुआ और आज अनेक सार्वदेशिक एवं क्षेत्रीय पत्र प्रकाशित हो रहे हैं। इनमें हिन्दी भाषा में प्रकाशित नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, वीर अर्जुन, नवजीवन, जनयुग, विश्वामित्र, सन्मार्ग, अमर उजाला, स्वतन्त्र भारत, आज आदि हैं तथा अँग्रेजी के टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, इण्डियन एक्सप्रेस, नेशनल हेरल्ड, नार्दर्न इण्डिया पत्रिका, स्टेट्समैन, पाइनिअर आदि हैं।

इनके अतिरिक्त साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्र-पत्रिकाएँ भी प्रकाशिक हो रही हैं।  यद्यपि ये शुद्ध रूप से समाचार-पत्रों के अंतर्गत नहीं आतीं। इनमें समाचारों के अतिरिक्त साहित्यिक विषयों पर लेखादि के साथ-साथ राजनीतिक, वैज्ञानिक, सामाजिक एवं व्यापारिक संवाद भी प्रकाशिक होते हैं।
इनमें हिन्दी के धर्मयुग,साप्ताहिक हिन्दुस्तान, दिशाभारती, ब्लिट्ज, नवनीत, इण्डिया-टुडे, सारिका, सरिता, कादम्बिनी, सहारा समय, नीहारिका, नन्दन, चन्दामामा आदि तथा अँग्रेजी के इलस्ट्रेटेड वीकली, मॉडर्न रिव्यू, ब्लिट्ज ( अँग्रेजी ), कारवाँ आदि प्रमुख हैं।




प्रमुख समाचार-एजेन्सियाँ :-

आज समाचार-पत्र एक सुगठित और विश्वव्यापी उद्योग बन चुका है और लाखों व्यक्तियों को रोजी-रोटी दे रहा है।  समाचार-पत्र प्रकाशन कार्य काफी परिश्रम, अनुभव और जागरूकता चाहता है। वैसे अनेक विश्वव्यापी एजेन्सियों ने समाचार-वितरण का कार्य ले रखा है। इन्हीं से प्राप्त समाचारों को समाचार-पत्र प्रकाशित किया करते हैं। इन एजेन्सियों के संवाददाता सारे विश्व में नियुक्त रहते हैं। ये एजेन्सियों को समाचार भेजते हैं और एजेन्सियाँ समाचार-पत्रों को। ये एजेन्सियाँ हैं - रायटर ( यूरोपीय ), तास ( रूसी ), न्यू चाइना ( चीनी ) तथा समाचार ( भारतीय ) पहले पी. टी. आई. भारतीय समाचार एजेन्सी थी।

ये समाचार- एजेन्सियां विश्व-समाचारों पर एकाधिकार रखती थीं और समाचारों को भी अपनी मान्यताओं और रूचि के रंग में रँग दिया करती थीं। फलतः विकासशील एवं तटस्थ देशों ने 1976 ई. में दिल्ली में एक सम्मेलन करके न्यूज पूल समाचार-भण्डार की स्थापना पर विचार किया, जिससे तृतीया विश्व के देशों को सही समाचार मिले और उनके समाचारों को उचित महत्व मिले।




समाचार-पत्रों का दायित्व :-

समाचारों का प्रकाशन ही समाचार-पत्रों का एकमात्र कार्य नहीं बल्कि समाज को सचेत, जागरूक और सूचित रखना भी इन्हीं का कार्य है। देश की राजनीतिक, सामाजिक, नैतिक, एवं आर्थिक दशा को सही रूप में प्रस्तुत करना और एकता, राष्ट्रीयता तथा विकास में योगदान करना भी समाचार-पत्रों का दायित्व है।
समाचार-पत्रों के उल्लेखनीय दायित्व निम्नवत हैं -


अंतर्राष्ट्रीय दायित्व :-

अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी समाचार-पत्र आज एक अति महत्वपूर्ण माध्यम बन चुका है। विश्व की राजनीति को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाले समाचार-पत्र ही हैं। साम्यवादी और पूजींवादी नाम से विख्यात विश्व के राष्ट्रों में सदभाव या दुर्भाग्य उत्पन्न कराना, अपने देश के आचरण का समर्थन, विरोधी-मत का खण्डन करना, विश्व की महत्वपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक घटनाओं को अपनी रूचि के रंग में रँगकर प्रकाशित करना, किसी महत्वपूर्ण समाचार को दबा जाना या महत्वहीन कर देना आदि ऐसे कार्य हैं जो समाचार-पत्र की गरिमा को नष्ट करने वाले हैं। निष्पक्ष समाचार एवं टिप्पणी से समाचार-पत्रों का महत्व बढ़ता है। लोग उन पर विश्वास करते हैं।


प्रजातंत्रीय दायित्व :-

प्रजातंत्र के वर्तमान युग में समाचार-पत्रों का दायित्व और भी महत्वपूर्ण हो गया है। वे मात्र समाचार देने वाले पत्र नहीं रह गए हैं। आज उनको प्रजातंत्र का चतुर्थ स्तम्भ और प्रजातंत्र का प्रहरी कहा जाता है। प्रजातंत्र के कुशल-क्षेम के लिए जागरूक और उत्तरापेक्षी जनमत की अनिवार्यता से कौन इन्कार कर सकता है ?
ऐसा जनमत बनना, जनता को देश-विदेश के नवीनतम घटनाक्रम से सूचित रखना, सत्ताहीन दलों की निरंकुशता को नियंत्रित करना तथा जनता की आकांक्षाओं और समस्याओं को अभिव्यक्ति देना आदि अनेक दायित्व आज प्रेस पर आ गए हैं। देश में व्याप्त उच्चस्तरीय भ्रष्टाचार को नंगा करने में देश के प्रेस या समाचार-पत्रों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


आत्म-नियंत्रण का दायित्व :-

समाचार-पत्र को तोप और तलवार से भी शक्तिशाली संघर्ष का माध्यम बताया गया है। समर्पित समाचार-पत्रों ने स्वाधीनता-आन्दोलन के समय अपनी इस शक्ति का परिचय भी करवाया था। जहाँ शक्ति है, सामर्थ्य है, वहाँ नियंत्रण भी परम आवश्यक है।

प्रेस की आजादी का मतलब मनमाना व्यवहार या उसे शोषण और भयादोहन का हथियार बनाना नहीं हो सकता। जो जितना अधिक शक्तिशाली है, प्रभावशाली है, उसे उतना ही संयम दिखाना चाहिए। पीत-पत्रकारिता समाचार-पत्रों का ऐसा ही पक्ष है जिसने समाचार-पत्रों को बदनाम किया है।  इसी उद्देश्य से  प्रेस परिषद् की स्थापना की गई है तथा अनेक बार प्रेस-पीड़ितों को न्यायालय का भी आश्रय लेना पड़ता है। स्तरीय पत्र-पत्रिकाएँ सदैव संयम और दायित्वशीलता का परिचय देते हैं।


अन्य उपयोगी भूमिकाएँ :-

राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रमों को सुविज्ञापित और प्रसारित करना और जन-सहयोग को क्रियाशील बनाना भी समाचार-पत्रों का कार्य है। इसके अतिरिक्त विज्ञापनों का प्रकाशन, बाजार-भाव-प्रदर्शन आदि नित्य-सूचना देना भी समाचार-पत्रों की चर्या में आता है।




समाचार पत्र-पत्रिकाओं का महत्व :-

आज के सिमटते विश्व समाचार-पत्र का भारी महत्व है। विश्व-बन्धुत्व की भावना को बढ़ाने और युद्ध की विभीषिका से संसार को बचाने में समाचार-पत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। अपने देश की यही तस्वीर पेश करना, राष्ट्रीय, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक आन्दोलनों में जनता का सही मार्गदर्शन करना भी समाचार-पत्रों का महत्वपूर्ण दायित्व है।




उपसंहार :-

पत्रकारिता एक गौरवशाली आजीविका है। समाज और शासन, दोनों ही पत्रकार को आदर देते हैं। अतः उनको भी अपनी गरिमा को ध्यान रखते हुए क्षुद्र स्वार्थों एवं लोभ-लाभों से बचना चाहिए। समाज को सत्य, शिव और सुन्दर के वरण में सहायक होकर अपनी महत्ता का परिचय देना चाहिए। एक उद्योग के रूप में भी समाचार-पत्रों का संरक्षण करना शासन का कर्तव्य है।

प्रेस परिषद् की स्थापना से एक आत्म-नियंत्रण और आचार की मर्यादा की स्थापना भी समाचार-पत्र-जगत में हुई। श्रमजीवी-पत्रकारों के वेतन तथा सुरक्षा आदि के विषय में सरकार को सचेत रहना आवश्यक है। निष्पक्ष विज्ञापन-नीति, कागज उपलब्ध कराना और समाज विरोधी तत्वों से संरक्षण भी शासन का कर्तव्य है।

आशा है कि भारतीय समाचार-पत्र उत्तरोत्तर अपने दायित्वों के निर्वहन में निष्पक्ष, सबल और सक्षम होंगे।