पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध
अथवा प्रदूषण और उसके निवारण के उपाय
अथवा पर्यावरण प्रदूषण : कारण एवं निवारण
अथवा पर्यावरण प्रदूषण : समस्या और समाधान
अथवा पर्यावरण प्रदूषण और वनों की उपयोगिता
अथवा धरती की पर्यावरण सुरक्षा




Essay on Environmental Pollution
Essay on Environmental Pollution




रूपरेखा :-


प्रस्तावना
पर्यावरणीय प्रदूषण के प्रकार
पर्यावरण-प्रदूषण बढ़ने के कारण
भयावह भविष्य का संकेत
प्रदूषण रोकने के उपाय
उपसंहार




प्रस्तावना :-

आज की दुनिया विचित्र नवीन
प्रकृति पर सर्वत्र है विजय पुरुष आसीन।
बँधे नर के करों में हैं वारि, विद्युत, भाप
हुक्म पर चढ़ता उतरना है पवन का ताप। ।

मनुष्य ने अपनी बुद्धि का दुरूपयोग करते हुए प्रकृति पर शासन करने की महत्त्वाकांक्षा सदा से पाली है। प्रकृति ने उसे उज्जवल धूप, निर्मल जल नमोरम हरीतिमा, मुक्त आकाश से वरदानित किया था किन्तु तथाकथित प्रगति और सभ्यता की अंधी दौड़ में उसने प्रकृति के हर अंग और भंगिमा को कुरूप और प्रदूषित कर डाला है। माँ के समान अपने अनन्त स्नेह-दान से जीव-मात्र का पोषण करने वाली प्रकृति आज्ञाकारिणी दासी बनाने की उदण्डता अब मानव को बहुत महँगी पड़ने वाली है। बाढ़, भूकम्प, महामारी, घातक-विकिरण आदि संकटों के लिए आज का मानव भी उत्तरदायी है। उसने प्रकृति के सहज-सन्तुलन को नष्ट करके पर्यावरण-प्रदूषण का अक्षम्य-अपराध किया है।





पर्यावरण प्रदुषण के प्रकार :-



आज सृष्टि का कोई पदार्थ, कोई कोना प्रदूषण के प्रहार से नहीं बच पाया है। प्रदूषण मानवता के अस्तित्व पर एक नंगी तलवार की भाँति लटक रहा है। प्रदूषण के मुख्य स्वरूप निम्नलिखित हैं-


जल प्रदूषण :-
जल मानव-जीवन के लिए परम् आवश्यक पदार्थ है। जल के परम्परागत स्रोत हैं - कुआँ, तालाब, नदी तथा वर्षों का जल। प्रदूषण के इन सभी स्रोतों को दूषित कर दिया है। औद्योगिक-प्रगति साथ-साथ हानिकारक कचरा और रसायन बड़ी बेदर्दी से इन जलस्रोतों में मिल रहें है। महानगरों के समीप से बहने वाली नदियों की दशा तो अकथित है गंगा, यमुना, गोमती - सभी नदियों की पवित्रता प्रदूषण की भेंट चढ़ गई है।

वायु-प्रदूषण:-
वायु भी जल जितना ही आवश्यक पदार्थ है । श्वास-प्रश्वास के साथ वायु निरन्तर शरीर में जाती है। आज शुद्ध वायु का मिलना भी कठिन हो गया है। वाहनों, कारखानों और सड़ते हुए औद्योगिक कचरे ने वायु में भी जहर भर दिया है। घातक गैसों के रिसाव भी यदा-कदा खण्ड-प्रलय मचाते रहते हैं।

खाद्य-प्रदूषण :-
प्रदूषित जल और वायु के बीच पनपने वाली वनस्पति तथा उसका सेवन करने वाले पशु-पक्षी आज भी प्रदूषित हो रहे हैं चाहें शाकाहारी हो या मांसाहारी, कोई भी भोजन के प्रदूषण से नहीं बच सकता।

ध्वनि प्रदूषण :-
आज मनुष्य को ध्वनि के प्रदुषण को भोगना पड़ रहा है। कर्णकटु और कर्कश ध्वनियाँ मनुष्य के मानसिक संतुलन को बिगाड़ती है और उसकी कार्य क्षमताओं को भी कुप्रभावित करती हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति की कृपा के फलस्वरूप आज मनुष्य कर्कश, आसानी और श्रवण शक्ति को क्षीण करने वाली ध्वनियों के समुद्र में रहने को मजबूर है। आकाश में वायुयानों की कानफोडू ध्वनियाँ, धरती पर वाहनों, यंत्रों ुऔर संगीत का मुफ्त दान करने वाले ध्वनि-विस्तारकों का शोर, सब मिलकर मनुष्य को बहरा बना देने पर तुले हुए हैं।




पर्यावरण-पदूषण बढ़ने के कारण :-


प्रायः हर प्रकार के प्रदूषण की वृद्धि के लिए हमारी औद्योगिक और वैज्ञानिक प्रगति तथा मनुष्य का अविवेकपूर्ण आचरण ही जिम्मेदार है। चर्म-उद्योग, कागज-उद्योग, छपाई-उद्योग, वस्त्र-उद्योग और नाना-प्रकार के रासायनिक उद्योगों का कचरा और प्रदूषित जल-लाखों लीटर की मात्रा में रोज नदियों में बहाया जाता है या जमीन में समाया जा रहा है। गंगाजल जो कि वर्षों तक शुद्ध और अविकृत रहने के लिए प्रसिद्ध था, वह भी हमारे पापों से मलिन हो गया है।


वाहनों का धूम विसर्जन, चिमनियों का धुआँ तथा रसायनशालाओं की विषैली गैसें मनुष्यों की साँसों में गरल फूँक रही हैं। प्रगति और समृद्धि के नाम पर यह जलरीला व्यापार दिन दूना बढ़ता रहा है। सभी प्रकार के प्रदूषण हमारी औद्योगिक, वैज्ञानिक और जीवन-स्तर की प्रगति से जुड़ गए हैं। हमारी हालत साँप-छछूँदर जैसी हो रही है।

इससे भी अधिक भयावह स्थिति की ओर वैज्ञानिक बराबर संकेत कर रहे हैं। यह स्थिति जल-प्रलय को निमंत्रण देने के समान है। कार्बन-डाई-ऑक्साइड, वातावरण को शनैः शनैः गर्म कर रही है। यह स्थिति जल-प्रलय को निमंत्रण देने के समान है। ध्रुवीय हिम पिघलेगा और समुद्रों का जल-स्तर बढ़ जायेगा। समुद्रतटीय बस्तियाँ तो तुरंत ही सागर के उदर में समा जाएँगी और शेष को द्वारिका का भाग्य देर-सबेर हो होगा।

फ्रिज और प्रशीतक यन्त्रों में प्रयुक्त होने वाले रसायनों से मुक्त गैस पृथ्वी के सुरक्षा-कवच-ओजोन-पर्त में छिद्र किये जा रही है। सूर्य से आने वाली घातक विकिरणों से जीवधारियों की रक्षा करने वाली यह पर्त यदि नष्ट हुई तो ताप-प्रलय का भयंकर दृश्य घटित होकर रहेगा।




पर्यावरण-प्रदूषण रोकने के उपाय :-

प्रदूषण ऐसा रोग नहीं जिसका कोई उपचार ही न हो। इसका पूर्ण रूप से उन्मूलन न भी हो सके तो भी इसे हानि-रहित सीमा तक नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके लिए कुछ कठोर, अप्रिय और असुविधाजनक उपाय भी अपनाने पड़ेंगे।

प्रदूषण फैलाने वाले सभी उद्योगों को बस्तियों से सुरक्षित दूरी पर ही स्थापित और स्थानान्तरित किया जाना चाहिए। उद्योगों से निकलने वाले कचरे और दूषित जल को निष्क्रिय करने के उपरान्त ही विसर्जित करने के कठोर आदेश होने चाहिए। किसी भी प्रकार की गन्दगी और प्रदूषित पदार्थ को नदियों और जलाशयों में छोड़ने पर कठोर दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए। नगरों की गन्दगी को भी सीधा जलस्रोतों में न मिलने देना चाहिए। किसी भी प्रकार का प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को नगर के बीच नहीं रहने देना चाहिए। वायु को प्रदूषित करने वाले वाहनों पर भी नियन्त्रण आवश्यक है।

ध्वनि-प्रदूषण से मुक्ति तभी मिलेगी जबकि वाहनों का अन्धाधुन्ध प्रयोग रोका जाये। हवाई अड्डे बस्तियों से दूर बनें और वायुयान भी बस्तियों के ठीक ऊपर से न गुजरें। रेडियो, टेपरिकॉर्डर तथा लाउडस्पीकरों को मंद ध्वनि से बजाया जाये।




उपसंहार :-

पर्यावरण-प्रदूषण से उदासीनता, मनुष्य के लिए अपनी चिता को आग-सँजोना सिद्ध होगी। भारत में ही बिहार के कोयला-क्षेत्र पर बसे नगर और गाँव अविवेकपूर्ण खनन के कारण जल-भराव और भीतर सुलगती आग से भी भू-समाधि ले सकते हैं। कलकत्ता नगर तो धीरे-धीरे धरती में समा ही रहा है। खनिज पदार्थों के अन्ध दोहन और भूगर्भीय जल-भण्डारों को दिनरात खाली करने का दुष्परिणाम अन्ततः भोगना हो पड़ेगा। समृद्ध जन समझ रहे हैं कि आग अभी उनके दरवाजे से दूर है। यह शुतुरमुर्गीय सोच मूर्खता की पराकाष्ठा है। महलों को भी झोंपड़ियों के साथ जल या थल-समाधि लेनी पड़ेगी।

प्रशासन और जन-साधारण, दोनों को ही इस प्रलय-संकेत से सावधान हो जाना चाहिए। केवल राजनीतिक तमाशे खड़े करने और स्वच्छता अभियानों की आड़ में करोड़ों डकारने वालों से प्रकृति पाई-पाई का हिसाब चुकता कर लेगी।