बेरोजगारी की समस्या और समाधान पर निबंध
अथवा बेरोजगारी : एक अभिशाप
अथवा जनसंख्या-वृद्धि और बेकारी




Essay on Unemployment Problem and Solution
Essay on Unemployment Problem and Solution



रूपरेखा :-

  • प्रस्तावना
  • भारत में बेरोजगारी का स्वरूप
  • बेरोजगारी के कारण
  • निवारण के उपाय
  • उपसंहार






प्रस्तावना :-

बेरोजगारी भारतीय युवावर्ग के तन और मन में लगा हुआ एक धुन है जो निरन्तर उसकी क्षमता, आस्था और धैर्य को खोखला कर रहा है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में बढ़ते बेरोजगारों का समूह देश के अर्थशास्त्रियों के दिवालियापन और देश की सरकारों के झूठ वायदों की करुण  कहानी है। सच तो यह है कि मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की अपने




भारत में बेरोजगारी का स्वरूप :- 

देश में बेरोजगारी के कई स्वरूप देखने को मिलते हैं। एक आंशिक या अल्पकालिक बेरोजगारी और दूसरी पूर्ण बेरोजगारी। आंशिक बेरोजगारी गाँवों में अधिक देखने को मिलती है। वहां फसल के अवसर पर श्रमिकों को काम मिलता है, शेष समय वे बेरोजगार से ही रहते हैं। निजी प्रतिष्ठानों में कर्मचारी की नियुक्ति अनिश्चितता से पूर्ण रहती है।

बेरोजगारी का दूसरा स्वरूप शिक्षित बेरोजगारों तथा अशिक्षित या अकुशल बेरोजगारों के रूप में दिखाई देता है। अकुशल या अशिक्षित बेरोजगारों को कोई भी छोटा-बड़ा काम अपनाने में संकोच नहीं होता। अतः शिक्षित बेरोजगारों की तुलना में उनकी स्थिति अच्छी रहती है।

बेकारी के परिणामों पर ध्यान देने से ज्ञात होता है कि वह समस्या ही आज देश को खोखला बना रही है। आज प्रत्येक परिवार में कुछ व्यक्ति बेरोजगार होते हैं। इन बेरोजगारों का भार परिवार के उन एक-दो सदस्यों पर पड़ता है जो कमाते हैं। इस प्रकार निर्धन व्यक्ति निर्धनतर बन जाता है और धनी-निर्धन के बीच की खाई बढ़ती जाती है। निराश बेरोजगार व्यक्ति के सामने तीन मार्ग रह जाते हैं  -

  • वह भीख माँगकर अपनी उदरपूर्ति करे,
  • अपराधियों के गिरोह की  शरण ले, अथवा
  • आत्महत्या कर ले


इस प्रकार की दिल दहला देने  वाली घटनाएँ आये दिन समाचार-पत्रों में छपती रहती हैं। बुभुक्षितः किम न करोति पापम भूखा व्यक्ति घोरतम अपराध कर सकता है।




बेरोजगारी के कारण :-


भारत में दिनों-दिन बढ़ती बेरोजगारी के भी कुछ कारण हैं। इन कारणों का निम्नवत वर्गीकरण किया जा सकता है -


  • जनसंख्या :-

यह हमारी प्रस्तुत समस्या का मुख्य कारण है। जनसंख्या के घनत्व की दृष्टि से चीन के  बाद हमारे देश का नाम आता है। जनसंख्या तो बढ़ती है किन्तु रोजगार के स्रोत नहीं बढ़ते। अतः ज्यों-ज्यों जनसंख्या बढ़ती है त्यों-त्यों बेरोजगारी की संख्या में भी वृद्धि होती जाती है।



  • दूषित शिक्षा प्रणाली :-

अंग्रेजों ने जो शिक्षा-पद्धति क्लर्क उत्पन्न करने के लिए चलाई थी, वह अब भी उसी दिशा में कार्यरत है। आज का शिक्षित युवक नौकरी अभाव में स्वयं किसी व्यवसाय से अपनी जीविका नहीं चला सकता। आज की शिक्षा-प्रणाली में व्यवसायिक परामर्श की कोई व्यवस्था नहीं है। आज का बालक जो शिक्षा पाता है वह उद्देश्य-रहित होती है। इस प्रकार वर्तमान शिक्षा-प्रणाली भी बेकारी की समस्या का प्रमुख कारण है।

  • उद्योग-नीति :-
हमारी सरकार की उद्योग-नीति भी इस समस्या को हल करने में असफल रही है । हमारे यहाँ औद्योगीकरण के रूप में बड़े उद्योगों को बढ़ावा दिया गया । आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की दृष्टि से यह एक अच्छा कदम था किन्तु मशीनीकरण के कारण बेकारी की समस्या और बढ़ गई । लघु अथवा कुटीर उद्योग के विकास के लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं वे भी अपर्याप्त हैं । 

  • रूढ़िवादी विचारधारा :- 
हम इस प्रगतिशील युग में भी रूढ़िवादी बने हुए हैं। किसी समय की तर्कपूर्ण वर्ण-व्यवस्था आज जातिवाद के रूप में हो चुकी है। वर्तमान समय में यदि व्यवसाय के कुछ नए मार्ग खुले हैं तो लोग उन्हें यह सोचकर नहीं अपनाते कि  अमुक कार्य उनकी जाति के करने का नहीं है। चर्म-कला, काष्ठ-कला, दर्जीगीरी आदि पर आधारित
उद्योग आज अच्छी दशा में हैं। इनसे निर्मित वस्तुओं का अन्य देशों को निर्यात भी हो रहा है।

  • मध्यमवर्गीय मानसिकता :-

आज समाज का मध्यम वर्ग ही सबसे अधिक त्रस्त है। छोटे काम अपनाने में उसकी नाक नीची होती है। यही कारण है कि महँगाई से मध्यम वर्ग ही सबसे अधिक प्रभाविक है।

  • आरक्षण नीति :-
दुर्बल और पिछड़े वर्ग को आरक्षण दिया जाना तो ठीक है लेकिन इसके नाम पर राजनीति करना और देश की प्रगति की कीमत पर आरक्षण देना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस नीति के कारण लाखों युवक-युवतियाँ बेकारी की पीड़ा सह रहे हैं। आरक्षण का प्रयोग राजनीतिक लाभों की प्राप्ति के लिए किया जा रहा है।

  • स्वरोजगार योजनाओं का दुरूपयोग :-
सरकार द्वारा अनेक रोजगारपरक योजनाएँ चलाई जा रही हैं। इनमें धन प्राप्त करके रोजगार चलाना आकाश-कुसुम के समान है। बैंक के बीसों चक्कर लगाइये, अधिकारियों को भेंट-पूजा चढ़ाइये, तब कहीं जाकर कुछ हजार रूपए पाइये। सबसे अधिक परेशानी उसी वर्ग को है जिसकी भलाई के नाम पर ये योजनाएँ चलाई जा रही हैं।

  • श्रम की अवज्ञा :-
इस देश में सबसे बड़ा आदमी वह है जिसे शरीर से कुछ भी नहीं करना पड़ता। ब्राह्मण अगर किसी कारीगरी को अपनाकर उदर-पूर्ति करने लगे तो उसे हीन दृष्टि से देखा जाता है लेकिन घाट किनारे भिक्षाटन करने वाले ब्राह्मण पूज्य माना जाता है। यह भी बेकारी में योगदान करने वाला तथ्य है।




निवारण के उपाय :-

इस विकट समस्या का समाधान सरकार और जनता के सम्मिलित प्रयासों से ही हो सकता है। सभी को नौकरी मिलना सम्भव नहीं। अतः स्व-उद्योग पर दिया जाना चाहिए। इनमें आने वाली सारी बांधाओं को दूर करना चाहिए। श्रम के प्रति सम्मान का भाव जगाया जाना चाहिए। ऐसे उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए। व्यावसायिक परामर्श सुलभ होना चाहिए ।




उपसंहार :-

भारत जैसे विशाल देश में जहाँ लाखों की संख्या में बेरोजगार हैं, कोई एक जादू का तरीका बेरोजगारी को दूर नहीं कर सकता ।  सभी के लिए नौकरी मिलना सम्भव नहीं । शिक्षा को रोजगारपरक बनाना होगा । ऐसे उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन देना होगा जो अधिक-से-अधिक रोजगार के अवसर प्रदान कर सकें । युवकों को स्वरोजगार के लिए धन उपलब्ध कराने के साथ-साथ रोजगार प्रारम्भ करने और चलाने  के लिए पुरा-पूरा मार्गदर्शन दिया जाना भी आवश्यक है ।